सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फ़िल्म "72 हूरें रिव्यू " || 72 Hoorain Review In Hindi

  राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की फिल्म ’72 हूरें’ मजहब के नाम पर कुकर्म करने वालों को एक ज़ोरदार तमाचा जड़ने का काम करती है। 72 Hoorain Review In Hindi :  फिल्म का नाम : 72 हूरें एक्टर्स : पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर निर्देशन: संजय पूरन सिंह चौहान निर्माता: गुलाब सिंह तंवर, किरण डागर, अनिरुद्ध तंवर सह-निर्माता: अशोक पंडित रेटिंग : 5/3.5 फिल्म "72 हूरें" सदियों से धर्मांध, कट्टरता और आतंकवाद का शिकार हो रहे दो युवकों पर आधारित है कि कैसे एक मौलाना के द्वारा धर्म के नाम पर लोगों को बहकाया जाता है और उन्हें 72 हूरें, जन्नत जैसे सुनहरें सपने दिखाते हुए टेररिज्म के जाल में फंसाया जाता है। फिर इस जाल में फंसे हुए लोगों से आतंकवादी हमले करवाया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि जिहाद के बाद जन्नत में उनका ज़ोरदार स्वागत होगा और 72 हूरें उनको वहां मिलेंगी। उनके अंदर 40 मर्दों की ताकत आ जाएगी और उन्हें वहां ऐश मौज करने का अवसर मिलेगा। कहानी का आरंभ मौलाना के इन्हीं ब्रेन वाश करने वाली तकरीरों से होती है। उसकी बातों और जन्नत तथा 72 हूरों के लालच में हाकिम

माँ तु सुन रही है ना (Maa Tu Sun Rahi Hai Na)

माँ   तू सुन रही है ना! आज फिर कराह उठा हूँ दर्द से जैसे बचपन में रोता था अक्सर गिरने के बाद! मगर तब तुम थी खड़ी मुझे संभालने को! आज तो बिल्कुल अकेला हूँ कमजोर हूँ, तुमसे इतनी दूर चले आने के बाद! माँ,    तू सुन रही है ना! सारी रात सो नहीं पाता हूँ, तलाशता रहता हूँ तकिये में तेरी गोद का सुकून और ममताभरी थपकियाँ! वो काजल के टीके मिट गए हैं अब मेरे माथे से, जो तुमने लगाए थे ज़माने भर की नज़रों से मुझे बचाने के लिए! माँ,   तू सुन रही है ना! काश! तुम होती हमेशा मेरे साथ, जैसे बचपन में रहती थी!

कुछ ख़्वाहिशें (Kuchh khwahishen)

कुछ ख्वाहिशें सूखने लगी है थककर आहिस्ता-आहिस्ता, जैसे बालकनी में कुछ तुलसी के पौधे मुरझाने को हैं! देखो न, आज कैसा हूँ मैं? बिल्कुल चाय की किसी ख़ाली कप की तरह, जिसे वक़्त ने पीकर छोड़ दिया है अतीत के टूटे-फूटे टेबल पर और उस पर कुछ यादों के गहरे ज़िद्दी धब्बे हैं! उदासियों का लिबास पहने मैं खड़ा हूँ अनमना सा, तुम्हारी उंगलियों को थामकर तनिक दूर साथ चलने के लिए...!         काश! तुम यह समझ पाते!!

तुम ख़ुश तो हो न (Tum Khush To Ho Na)

अज़ीब कशमकश है तुझे खो देने पर, जैसे आज मैं ख़ुद के ही घर में अजनबी हूँ... सब कुछ तो है तुम्हारे पास बस एक मैं ही नहीं हूँ मगर क्या फ़र्क पड़ता है मेरे होने न होने से.... भले मेरे सपनों के शहर जल गये जलने दो,    तुम ख़ुश तो हो न? शायद ! मैं धब्बा ही था तेरे दामन का, चलो नजात मिल गई तुम्हें! मुबारक हो यह नया सफ़र, आख़िर शुरुआत मिल गई तुम्हें! सुना है रास्तों में लोग अक्सर बिछड़ जाते हैं बिछड़ने दो,    तुम ख़ुश तो हो न? कुछ देर साथ रहने से रिश्ता जुड़ ही जाता है, मगर कोई बात नहीं, रिश्ते भी बिकते हैं यहाँ बीच सड़कों पर ख़रीद लेना देखकर कहीं! इन आँखों का क्या बरस जाते हैं ज़रा सी चोट लगने पर बरसने दो,    तुम ख़ुश तो हो न?