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फ़िल्म "72 हूरें रिव्यू " || 72 Hoorain Review In Hindi

  राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की फिल्म ’72 हूरें’ मजहब के नाम पर कुकर्म करने वालों को एक ज़ोरदार तमाचा जड़ने का काम करती है। 72 Hoorain Review In Hindi :  फिल्म का नाम : 72 हूरें एक्टर्स : पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर निर्देशन: संजय पूरन सिंह चौहान निर्माता: गुलाब सिंह तंवर, किरण डागर, अनिरुद्ध तंवर सह-निर्माता: अशोक पंडित रेटिंग : 5/3.5 फिल्म "72 हूरें" सदियों से धर्मांध, कट्टरता और आतंकवाद का शिकार हो रहे दो युवकों पर आधारित है कि कैसे एक मौलाना के द्वारा धर्म के नाम पर लोगों को बहकाया जाता है और उन्हें 72 हूरें, जन्नत जैसे सुनहरें सपने दिखाते हुए टेररिज्म के जाल में फंसाया जाता है। फिर इस जाल में फंसे हुए लोगों से आतंकवादी हमले करवाया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि जिहाद के बाद जन्नत में उनका ज़ोरदार स्वागत होगा और 72 हूरें उनको वहां मिलेंगी। उनके अंदर 40 मर्दों की ताकत आ जाएगी और उन्हें वहां ऐश मौज करने का अवसर मिलेगा। कहानी का आरंभ मौलाना के इन्हीं ब्रेन वाश करने वाली तकरीरों से होती है। उसकी बातों और जन्नत तथा 72 हूरों के लालच में हाकिम

आँसू मत बहाना (Aansoon Mat Bahana)

    अपने पिया के नगर से  कच्ची धूल भरी डगर से  इस पराये से मेरे गाँव में  अमराईयों की घनी छाँव में, तुम जब कभी आना  आँसू मत बहाना।। वो मधुर मिलन की रात  कोई सहसा दिलाये तुम्हें याद  सखियाँ छेड़ बैठी अगर मेरी बात अपने कलेजे पर रखकर  एक भारी सा पत्थर  खारे आँसुओं को पी कर,  हँसते हुए हर बात टाल जाना, पर आँसू मत बहाना।।  साँझ ढले जब सन्नाटों में  काली स्याह रातों में। सिसकती मिलेगी मेरी आह  किस हाल में जी रहा हूँ मैं,  किस दर्द से तड़प रहा हूँ  ना करना कभी पूछने की चाह।  कि जिससे नेह टूटा, साथ छूटा  वह तेरा मीत कैसा,  मैं अब तेरा अपना नहीं  पराए लोगों से भला मोह कैसा? मेरी व्यथा को देखकर  ना अपना मन दुखाना  आँसू मत बहाना।।  गाँव भर से मिलना-जुलना  कुछ कहना, कुछ सुनना। मीठी स्मृतियों के मोती  मन ही मन चुनना। मत गीला करना मखमली आँचल,  छलकते आँसुओं को ज़रा थाम लेना  मगर भूल कर भी  ना कभी मेरा नाम लेना।  मेरी हरेक यादों को  माज़ी की गोद में दफ़ना कर  हँसते चले जाना  अपने पिया के घर तुम्हें क़सम है मेरी मोहब्बत की बस यह आख़िरी क़सम निभाना  आँसू मत बहाना।।