सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

फ़िल्म "72 हूरें रिव्यू " || 72 Hoorain Review In Hindi

  राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की फिल्म ’72 हूरें’ मजहब के नाम पर कुकर्म करने वालों को एक ज़ोरदार तमाचा जड़ने का काम करती है। 72 Hoorain Review In Hindi :  फिल्म का नाम : 72 हूरें एक्टर्स : पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर निर्देशन: संजय पूरन सिंह चौहान निर्माता: गुलाब सिंह तंवर, किरण डागर, अनिरुद्ध तंवर सह-निर्माता: अशोक पंडित रेटिंग : 5/3.5 फिल्म "72 हूरें" सदियों से धर्मांध, कट्टरता और आतंकवाद का शिकार हो रहे दो युवकों पर आधारित है कि कैसे एक मौलाना के द्वारा धर्म के नाम पर लोगों को बहकाया जाता है और उन्हें 72 हूरें, जन्नत जैसे सुनहरें सपने दिखाते हुए टेररिज्म के जाल में फंसाया जाता है। फिर इस जाल में फंसे हुए लोगों से आतंकवादी हमले करवाया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि जिहाद के बाद जन्नत में उनका ज़ोरदार स्वागत होगा और 72 हूरें उनको वहां मिलेंगी। उनके अंदर 40 मर्दों की ताकत आ जाएगी और उन्हें वहां ऐश मौज करने का अवसर मिलेगा। कहानी का आरंभ मौलाना के इन्हीं ब्रेन वाश करने वाली तकरीरों से होती है। उसकी बातों और जन्नत तथा 72 हूरों के लालच में हाकिम

लतख़ोर होली (Latkhor Holi)

     
   

        मैं आज अपने कमरे में बैठा कुछ लिखने की सोच ही रहा था कि अचानक मेरे एक अज़ीज मित्र "अंगद बाबू" पके आम की तरह टपक पड़े,आते ही उन्होंने बड़े गर्मज़ोशी के साथ दण्ड-प्रणाम किया तो मैंने भी औपचारिकतावश उनका हाल-चाल पूछ लिया! दो महीने बाद होली का त्योहार आने वाला था, सो मैंने होली की तैयारी जाननी चाही! होली का नाम सुनते ही बेचारे अंगद बाबू सहम गए, मुझे यह समझते देर न लगी कि इन्हें पिछले साल की होली का दर्दनाक मंञ्जर याद आ गया! मैंने सोचा चलो आज इसे ही लिख लिया जाए, दरअसल यह किस्सा कुछ इस प्रकार है:-

पिछले साल सुबह का वक़्त था मैंने प्रतिज्ञा कर लिया था कि यह होली मैंने सादगी से मनाऊँगा लेकिन हमारे मित्र अंगद बाबू को तो दारू पीने की सनक सवार थी, और इन्हें कुछ यादगार होली चाहिए था! अतः सुबह-सुबह ही इन्होंने दो-तीन बोतल शराब मुर्ग कबाब के साथ गटक लिया और आवारा साँड़ की तरह इधर-उधर उधम मचाने लगे! कभी देशी सियार की तरह जोर-जोर से हुआं-हुआं चिल्लाते तो कभी ऑस्ट्रेलियन कंगारू की तरह उछलते-कूदते और किसी का दरवाजा पिटते!
इसी प्रकार मदमस्त हाथी की तरह झूमते हुए अंगद बाबू मकान के छत पर जा पहुंचे,पास ही दूसरे मकान के छत पर भी होली का विशेष कार्यक्रम के तौर पर नाच-गाना चल रहा था वहाँ कुछ बिहारी कन्याएँ भी उस नाच-गान का आनंद ले रही थी! इन कन्याओं को देखते ही हमारे अंगद बाबू की जवानी समंदर के लहरों की भांति हिचकोले खाने लगी, एक तो अपनी बीवी की याद दूसरा शराब का उन्माद! बस फिर क्या था अंगद बाबू ने न आव देखा न ताव इमोशन में आकर एक सुंदर और सुशील कन्या को आँख मार डाली, वह भी एक बार नहीं पूरे पाँच बार! वो तो वो इन्होंने फ्लाइंग कीस तक दे मारी, वह औरत इनकी बेहयाई देखकर गुस्से से लाल-पीली होती और पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई! अब हमारे अंगद बाबू की खुशी का ठिकाना नहीं था,वह इस कद़र खुश थे जैसे पहली बरसात में कोई मेढ़क खुश होता है! आख़िर हो भी क्यों न उन्होंने दूसरे की बीवी को आँख जो मार डाली थी और यह कार्य कोई साहसी व्यक्ति ही कर सकता है! ततपश्चात् वह दौड़ते हुए अपने कमरे में आए और पूरी वैल्यूम के साथ DJ बजाने और नाचने लगे!

बेचारे अंगद बाबू, आने वाले शनि महाराज की साढ़ेसाती से अनजान DJ की धुन पर नागिन डांस रहे थे कि अचानक वह औरत अपने साथ चार पहलवानों को लेकर दरवाजे पर आ धमकी! जैसे ही इस औरत ने घर का दरवाजा खोला सामने नृत्य-मुद्रा में अंगद बाबू ही नज़र आ गए, अब चार हट्टे-कठ्ठे मुस्टंडों के साथ उस औरत को देखते ही इनका नशा और नागिन डान्स दोनों हवा मिठाई की तरह उड़ गया! अब अंगद बाबू कुछ हाल-ए-दिल बयां कर पाते कि उससे पहले उन चारों राक्षसों ने इन्हें ऐसे झपट्टा मार कर दबोचा जैसे कोई उड़ती हुई चील मुर्गी के चूजों को दबोचती है, अब उन चारों पहलवानों ने अंगद बाबू को खींचकर कमरे से बाहर निकालना आरंभ किया लेकिन हमारे अंगद बाबू अपने नाम के अनुसार ही बालीपुत्र अंगद की तरह पूरी ताकत से अपने पैर जमाए हुए थे और टस से मस होने का नाम नहीं ले रहे थे! कि तब तक एक पहलवान ने अंगद बाबू को पीछे से एक जोरदार लात जमा दिया,अब इनकी सारी ताकत गायब हो गई और ये "हाय-हाय" करते हुए मुँह के बल गीर गये! तभी दूसरे पहलवान ने इनकी फ्रंट के लम्बे-लम्बे बॉब कट बाल को पकड़ कर ऊपर की ओर खींचा, अब बेचारे अंगद बाबू दर्द से बिलबिलाते और दांत भिंचते हुए छटपटा कर खड़े हो गए! फिर क्या था, उन चारों जल्लादों ने अंगद बाबू को कुछ इस तरह से खींचना शुरु किया जैसे कोई कसाई बकरे को काटने के लिए जबरदस्ती खींच कर ले जाता है,
दस-बारह कदम दूर ले जाकर उन चारों नें हमारे अंगद बाबू को कपड़ों की गठ्ठर के भांति ऊपर से खूब उठा-उठाकर पटका और फिर उन पर लात घूँसों की मूसलधार बारिश करके अधमरा कर दिया! हमारे अंगद बाबू चाहते हुए भी चिल्ला नहीं पा रहे थे, वह ज्यों ही चिल्लाने के लिए मुँह खोलते एक जोरदार घूँसा उनके मुंह पर आ लगता और उनकी चीख वापस उनके हलक में घुस जाती! यह ट्रेलर करीब 5-10 मिनट तक चलता रहा! लात-घूँसों की शोर से वहां तुरंत लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई और उस चुड़ैल औरत को किसी तरह समझा बुझाकर उसके चंगुल से अंगद बाबू को छुड़ाया गया! लेकिन उनके धारदार हमलों से अंगद बाबू का हुलिया पिचके हुए डिब्बे की तरह हो गया था, साथ ही यह होली भी यादगार हो चुका था!

karanmastana75@gmail.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आख़िर क्यों हुआ था महाभारत का युद्ध ? || Aakhir Kyo'n Huaa Tha Mahabharat Ka Yuddh

Mahabharat Hone Ke Kaaran ! आज हम श्रीमद् भागवत गीता की पृष्ठभूमि के बारे में चर्चा करेंगे। यानि हम उस कहानी को समझने का प्रयास करेंगे जिसके कारण इसकी ज़रूरत पड़ी।  जैसा कि आप सभी जानते हैं कि सनातन धर्म में श्रीमद् भागवत गीता का व्यापक पठन पाठन होता रहा है लेकिन यह मूलत संस्कृत महाकाव्य महाभारत के उपकथा के रूप में जाना जाता है। महाभारत में वर्तमान कलयुग की घटनाओं का भी विवरण मिलता है। इसी युग के आरंभ में आज से लगभग 5000 साल पहले भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र तथा परम भक्त कुंती पुत्र अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था। उनका यह उपदेश मानव इतिहास की सबसे महान दार्शनिक तथा धार्मिक वार्ताओं में से एक है, जो उस महायुद्ध के आरंभ से ठीक पहले देवकी नंदन कृष्ण और अर्जुन के बीच हुई। यह धृतराष्ट्र के 100 पुत्रों तथा उनके चचेरे भाई पांडव पुत्रों के बीच होने वाला भीषण युद्ध था। धृतराष्ट्र और पांडू दोनों सगे भाई थे जिनका जन्म महान कुरु वंश में हुआ था और वे राजा भरत के वंशज थे जिनके नाम पर ही इसका नाम महाभारत नाम पड़ा। बड़े भाई धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे इसलिए हस्तिनापुर का राज सिंहासन

मैंने देखी है ख़्वाजा की दरियादिली (Urdu Song)

  मैंने देखी है ख़्वाजा की दरियादिली उस चश्म-ए-करम का क्या कहना। ख़ाली रहता नहीं कोई दस्त-ए-दुआ बादशाह-ए-हरम का क्या कहना।। मैंने देखी है ख़्वाजा की...... Antra:- फ़िक्र क्या उसको जिसपे मेहरबान वो, ये जहां सल्तनत उसका सुल्तान वो। जा के देखो कभी उसके दहलीज़ पे मुश्किल-ए-राह कर देगा आसान वो।। कर दिया मेरे आक़ा ने मुझको रिहा कि हकीम-ए-अलम का क्या कहना। ख़ाली रहता नहीं कोई दस्त-ए-दुआ बादशाह-ए-हरम का क्या कहना।। मैंने देखी है ख़्वाजा की...... Antra:- हैं गवाह मुद्दतों से ज़मीन आसमां, उसके होते हुए कोई तन्हा कहां। है निगहबान उसपे यक़ीं रख ज़रा वो न मजबूर छोड़े किसी को यहां। उसकी नेमत के आशिक तलबगार हम उस ग़नी हम क़दम का क्या कहना। ख़ाली रहता नहीं कोई दस्त-ए-दुआ बादशाह-ए-हरम का क्या कहना।। मैंने देखी है ख़्वाजा की......

फ़िल्म "72 हूरें रिव्यू " || 72 Hoorain Review In Hindi

  राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की फिल्म ’72 हूरें’ मजहब के नाम पर कुकर्म करने वालों को एक ज़ोरदार तमाचा जड़ने का काम करती है। 72 Hoorain Review In Hindi :  फिल्म का नाम : 72 हूरें एक्टर्स : पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर निर्देशन: संजय पूरन सिंह चौहान निर्माता: गुलाब सिंह तंवर, किरण डागर, अनिरुद्ध तंवर सह-निर्माता: अशोक पंडित रेटिंग : 5/3.5 फिल्म "72 हूरें" सदियों से धर्मांध, कट्टरता और आतंकवाद का शिकार हो रहे दो युवकों पर आधारित है कि कैसे एक मौलाना के द्वारा धर्म के नाम पर लोगों को बहकाया जाता है और उन्हें 72 हूरें, जन्नत जैसे सुनहरें सपने दिखाते हुए टेररिज्म के जाल में फंसाया जाता है। फिर इस जाल में फंसे हुए लोगों से आतंकवादी हमले करवाया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि जिहाद के बाद जन्नत में उनका ज़ोरदार स्वागत होगा और 72 हूरें उनको वहां मिलेंगी। उनके अंदर 40 मर्दों की ताकत आ जाएगी और उन्हें वहां ऐश मौज करने का अवसर मिलेगा। कहानी का आरंभ मौलाना के इन्हीं ब्रेन वाश करने वाली तकरीरों से होती है। उसकी बातों और जन्नत तथा 72 हूरों के लालच में हाकिम