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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फ़िल्म "72 हूरें रिव्यू " || 72 Hoorain Review In Hindi

  राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की फिल्म ’72 हूरें’ मजहब के नाम पर कुकर्म करने वालों को एक ज़ोरदार तमाचा जड़ने का काम करती है। 72 Hoorain Review In Hindi :  फिल्म का नाम : 72 हूरें एक्टर्स : पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर निर्देशन: संजय पूरन सिंह चौहान निर्माता: गुलाब सिंह तंवर, किरण डागर, अनिरुद्ध तंवर सह-निर्माता: अशोक पंडित रेटिंग : 5/3.5 फिल्म "72 हूरें" सदियों से धर्मांध, कट्टरता और आतंकवाद का शिकार हो रहे दो युवकों पर आधारित है कि कैसे एक मौलाना के द्वारा धर्म के नाम पर लोगों को बहकाया जाता है और उन्हें 72 हूरें, जन्नत जैसे सुनहरें सपने दिखाते हुए टेररिज्म के जाल में फंसाया जाता है। फिर इस जाल में फंसे हुए लोगों से आतंकवादी हमले करवाया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि जिहाद के बाद जन्नत में उनका ज़ोरदार स्वागत होगा और 72 हूरें उनको वहां मिलेंगी। उनके अंदर 40 मर्दों की ताकत आ जाएगी और उन्हें वहां ऐश मौज करने का अवसर मिलेगा। कहानी का आरंभ मौलाना के इन्हीं ब्रेन वाश करने वाली तकरीरों से होती है। उसकी बातों और जन्नत तथा 72 हूरों के लालच में हाकिम

क्योंकि मैं औरत हूँ न (Kyonki Main Aurat Hoon Na)

कर डालो मेरा व्यापार  या बेच दो बीच बाज़ार दीर्घकाल से करता राज  तेरी दुनिया,तेरा समाज! मैं कुछ न बोलूँगी  प्रत्येक यातना झेलूँगी क्योंकि मैं औरत हूँ न! यद्यपि करके कष्ट सहन  करूँ दायित्वों का निर्वहन  संभालूँ निज घर परिवार  पाया यही मैंने संस्कार! मुझपे सबका हक बेशक  नहीं किसी पर मेरा हक  क्योंकि मैं औरत हूँ न!  घर-आँगन की फुलझड़ी  विवशता में है जकड़ी  यहाँ समाज पुरुष प्रधान  फिर क्यों मिले हमें सम्मान  यह उपेक्षा और तिरस्कार करती जाऊँ सब स्वीकार क्योंकि मैं औरत हूँ न! विविध रस्मों का ओढ़ कफ़न  कारागृह सा है जीवन  आँसू आजीवन पीना है  घुट-घुटकर ही जीना है  नहीं आज़ादी शीश उठाना  चाहे रावण बने ज़माना क्योंकि मैं औरत हूँ न! महज़ वासना की दुकान  आज यही मेरी पहचान  करके सदा ही दोषारोपण  करती रही है दुनिया शोषण  करने को सृष्टि-विस्तार  सहती हूँ असहनीय भार  क्योंकि मैं औरत हूँ न!

हे नारी तू महान है (He Nari Tu Mahan Hai)

हरपल पीड़ा सहकर भी  विषमता में रहकर भी बूँद-बूँद स्वयं गलकर भी  देती है ममता की छाँव  एक विशाल वट वृक्ष की भांति  जननी, सहोदरा, सुता और अर्द्धागिंनी, विविध रूपों में बँटकर भी  ढोती है इन रिस्तों की मर्यादा  एक अतुल्य स्तंभ और  सृष्टि की मुस्कान है, हे नारी तू महान है हे नारी तू महान है!! घर-आँगन की कुसुम-कली  जीवन का अनमोल आभूषण  जग प्रवाह की मौन गति  या समाज का हृदय-स्पंदन  हर पल  हर कदम  तू संसार की जरूरत है  तुम्हीं से सृजन संभव  तू सहिष्णुता की मूरत है  समृद्धि की श्वासा तू  जग तेरे बिना वीरान है, हे नारी तू महान है  हे नारी तू महान है!! अपना लहू पिलाकर तुमने  अखिल विश्व को विस्तार दिया  किंतु इसके बदले जग ने  सदैव तेरा संहार किया क्या एक कदम चल पाएगा  यह दुनिया तुझको खो कर  ध्वस्त हो जाएगी सृष्टि  तुमसे पृथक हो कर! तेरी शीतल छाया में ही  नवयुग का उत्थान है, तू बोझ नहीं जग के लिए  एक संजीवनी वरदान है! हे नारी तू महान है हे नारी तू महान है!!

दादा जी की संगीत संध्या (हास्य-व्यंग्य) Dada Jee Ki Sangit Sandhya

       आज रविवार था और मैं अपने कमरे में बैठकर मुंबई के कुछ खास घूमने योग्य स्थानों पर जाने का विचार कर रहा था! यूँ तो मुंबई के सड़कों पर भीड़ प्रायः हमेशा रहती है लेकिन रविवार को अत्यधिक हो जाती है, अतः मैंने मुंबई भ्रमण की योजना को रद्द करना ही उचित समझा! मैं इसी उधेड़-बुन में खोया था कि गाँव से दादा जी का फोन आ गया! तो आज मैं सोचता हूँ कि आप लोगों को अपने दादाजी की कुछ वॉयोग्राफी बताऊं!  हमारे दादा जी अपने गाँव में अच्छी ख़ासी शख़्सियत रखते हैं, कहा जाता है कि वह अपने जमाने के प्रतिष्ठित कीर्तनिया सिंगर थे! उनके आगे अच्छे-अच्छे गायकों की धोती ढीली हो जाती थी, यह समझिए कि उन्हें अपने गांव में पॉप सिंगर माइकल जैक्सन की उपाधि मिली थी! देखा जाए तो उनकी गायकी का अंदाज एकदम गजब का है और मुझे लगता है कि शायद उनके गले में साक्षात सरस्वती माँ निवास करती हैं,क्या गाने की धुन तैयार करते हैं लाज़वाब, एकदम बप्पी लहरी की तरह! बस एक धुन मैं उनकी आज तक नहीं समझ पाया हूँ और शायद समझ भी नहीं पाऊँगा, वह भजन गाते- गाते अक्सर रास्ता भटक कर हिंदी और भोजपुरी दुनिया में चले जाते हैं, उनकी गायन श

परिवर्तन (Parivartan)

परिवर्तन   सड़कों पर तेजी से दौड़ती गाड़ियाँ आकाश में उड़ते हवाई जहाजें, सागर में दहाड़ते विशालकाय पोत सिमटी हुई छोटी सी यह दुनिया है भाग-दौड़ की भीड़ में लोप! नित्य नये-नये सुख-सामग्री का सृजन करता हुआ यह विज्ञान, प्रतिपल दुनिया में परिवर्तन का एक नया आयाम गढ़ता हुआ इंसान न जाने किस ऊँचाई पर तीव्र गति से चला जा रहा है! कैसा है यह परिवर्तन? बदलती हुई सभ्यता-संस्कृति, उजड़ता हुआ यह परिवेश चकाचौंध की दलदल में धँसता गाँव,शहर और देश! यह क्रांति ने मानव को सुखी, समृद्ध और ताकतवर बना दिया है किंतु दूसरी ओर उतना ही दुःखी, गरीब और कमजोर भी! आज इस प्रगतिशील युग में मानव स्वयं को अकेला,असहज़ और असुरक्षित महसूस करता है! भीड़ से बचने को एकांत ढूँढता है, आख़िर कैसी है यह क्रांति? जो हमें स्वार्थी, आलसी और शैतान कर दे मानवता से कोसों दूर दरिंदगी से सराबोर निष्ठुर,नासमझ और नादान कर दे! कैसी है यह प्रगति? जो दायित्वों से विरक्त कर दे विनाश को आमंत्रित कर दे मनुष्यता को संक्रमित कर दे धरती को निर्वसन कर दे आकाश को अभिशप्त कर दे जल को दूषित कर दे समस्त सृष्ट