सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फ़िल्म "72 हूरें रिव्यू " || 72 Hoorain Review In Hindi

  राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की फिल्म ’72 हूरें’ मजहब के नाम पर कुकर्म करने वालों को एक ज़ोरदार तमाचा जड़ने का काम करती है। 72 Hoorain Review In Hindi :  फिल्म का नाम : 72 हूरें एक्टर्स : पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर निर्देशन: संजय पूरन सिंह चौहान निर्माता: गुलाब सिंह तंवर, किरण डागर, अनिरुद्ध तंवर सह-निर्माता: अशोक पंडित रेटिंग : 5/3.5 फिल्म "72 हूरें" सदियों से धर्मांध, कट्टरता और आतंकवाद का शिकार हो रहे दो युवकों पर आधारित है कि कैसे एक मौलाना के द्वारा धर्म के नाम पर लोगों को बहकाया जाता है और उन्हें 72 हूरें, जन्नत जैसे सुनहरें सपने दिखाते हुए टेररिज्म के जाल में फंसाया जाता है। फिर इस जाल में फंसे हुए लोगों से आतंकवादी हमले करवाया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि जिहाद के बाद जन्नत में उनका ज़ोरदार स्वागत होगा और 72 हूरें उनको वहां मिलेंगी। उनके अंदर 40 मर्दों की ताकत आ जाएगी और उन्हें वहां ऐश मौज करने का अवसर मिलेगा। कहानी का आरंभ मौलाना के इन्हीं ब्रेन वाश करने वाली तकरीरों से होती है। उसकी बातों और जन्नत तथा 72 हूरों के लालच में हाकिम

शादी का साइड इफेक्ट (Sadi Ka Side Efect)

                                        शादी भी जीवन की ऐतिहासिक घटना है, एक बार इसका साइड इफेक्ट हो जाये तो इंसान जीवनभर अथाह पीड़ा में ही डूबा रहता है। आज मैं यह मुद्दा सोशल मीडिया पर ज़ोर-शोर से उठाने की कोशिश ही कर रहा था कि इस कहानी के नायक मिल गये। तो चलिए विषय वस्तु पर लौटते  हैं। इस किस्से के सुपर हीरो हैं हमारे गाँव के दिलफेंक दोस्त रामरंजन मिश्र, आस-पड़ोस के बच्चे-बूढ़े उन्हें रामु काका भी कहते हैं, हमलोगों ने पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद और आशिक़ी भी साथ-साथ की है मगर वो प्रेम ग्रन्थ में अपना नाम अमर करवा लिये और मैं “बेदर्दी से प्यार का सहारा ना मिला” गा-गाकर अपने दिल को समझा लिया। उनका पके आम में आई लव यू के साथ गुलाबी दिल का डिजाईन बनाकर लड़कियों पर डोरे डालना वाला प्रपोज़ स्टाईल को आज भी गाँव के हर लड़के फॉलो करते मिलेंगे। ख़ैर मुद्दे पर आते हैं - शादी से पहले मिसिर टोला में इनकी तूती बोलती थी। साँप-बिच्छ मारना हो, आहर-पोखर में कूदना हो, कोई आपातकाल में या गाँव-घर के लड़ाई-झगडे में मोर्चा संभालना हो हमारे रामरंजन जी  यजमानी लाल गमछा का लंगोट बांधकर और हाथ में दो आँखों

भुलक्कड़ दोस्त (Bhulakkad Dost)

                           भुलक्कड़ दोस्त         मुंबई में मेरी एक प्रिय दोस्त है ऋतुज़ा, उसे मैं प्यार से ऋतु ही कहता हूँ! दोस्ती नई-नई ही हुई है लेकिन हमारी अच्छी-ख़ासी जमती है बिल्कुल सूई-डोरे की तरह! बस कभी-कभी उसकी कमज़ोर यादास्त की वज़ह से यह मोटी-तगड़ी रिलेशनशिप पतन के पॉजीशन पर पहुँच जाती है, इसलिए मैंने उसे A ग्रेड(Upper Grade) की भुलक्कड़ की पदवी दे डाली है! अब वह इस मामले को अक्सर खींच-तानकर अपना नाक-मुँह टेढ़ा करती रहती है और मुझे दिन-दहाड़े धमकाती रहती है! मैं कल दोपहर में बैठा हुआ था कि ऋतु का फोन आया और वह बोली आज शाम घर पर आ जाना बर्थडे पार्टी है, बर्थडे पार्टी का नाम सुनते ही मेरा रूह काँपने लगा! दरअसल आजकल यो-यो टाईप के लड़के और लड़कियाँ केक के कट्टर दुश्मन हैं, ये केक खाते नहीं बल्कि उसे पूरे सिर और चेहरे पर चुपड़ लेते हैं, जैसे कोई जंगली भैंसा कीचड़ से सना हुआ बाहर निकला हो! इसलिए मैं थोड़ा अलर्ट रहता हूँ कि कहीं कोई मुझे भी पकड़कर जबरदस्ती इस कैटेगरी में न घुसेड़ दे! शाम ढलते ही मैं मॉडर्न लुक में तैयार होकर ऋतु के घर पहुँचा, ऋतु बरामदे में क

चेरोवंशीय साम्राज्य का अमूल्य धरोहर: शाहपुर का किला (Shahpur Kila, Palamu)

चेरोवंशीय साम्राज्य का अमूल्य धरोहर: शाहपुर का किला पलामू का मुख्यालय मेदिनीनगर (डाल्टनगंज)के दक्षिण दिशा में कोयल नदी के तट पर अवस्थित शाहपुर किला पलामू इतिहास के सैकड़ों वर्षों की स्मृतियों को समेटे बद्हाल अवस्था में खड़ा है| स्थानीय लोग इस किले को चलानी किला भी कहतें हैं| इतिहास के अनुसार इसका निर्माण 1766-1770 के आसपास चेरोवंशीय राजा गोपाल राय ने करवाया था और चेरो सत्ता के अवसान काल के दौरान पलामू का सम्राज्य को यहीं से संचालित किया जाता था| सन् 1771 में पलामू किला पर अंग्रेजों के आक्रमण और नियंत्रणाधीन होने के बाद शाहपुर किला ही राजा का निवास स्थान बना| कहा जाता है कि इस किले से सुरंग के रुप में एक गुप्त मार्ग पलामू किला तक जाता था| इस किले में चेरो वंश के अंतिम शासक राजा चुड़ामन राय और उनकी पत्नी चंद्रावती देवी की प्रतिमा स्थापित की गई है| शाहपुर मुख्य मार्ग पर स्थित इस किले से कोयल नदी समेत मेदिनीनगर क्षेत्र के मनोहारी प्राकृतिक दृश्य को देखा जा सकता है| कुछ वर्ष पूर्व इस किले को पुरातात्विक घोषित किया गया हैं लेकिन इसके बावजूद

अपनी यह ख़ामोशी तोड़ (Apni Yah Khamosi Tod)

अपनी यह ख़ामोशी तोड़ सहोगे कब तक यह प्रहार छीन रहा तेरा अधिकार बहुत हुआ छल-कपट,अंधेर आँखें खोल अब मत कर देर देख तुम्हें सब रहे निचोड़, अपनी यह ख़ामोशी तोड़! सिर्फ़ दिखावा है यह पोषण हो रहा है तेरा शोषण तेरी रोटी किसी का भोजन आख़िर इसका क्या प्रयोजन दुर्बल बनकर रहना छोड़, अपनी यह ख़ामोशी तोड़! वर्तमान की यही सच्चाई कोई न समझे पीर पराई देकर लालच दिखाकर सपना सब गेह भरे हैं अपना-अपना लगी है लुटेरों में होड़, अपनी यह ख़ामोशी तोड़! यह तेरा रहना चुपचाप बन जाये न कहीं अभिशाप ओस नहीं अब बन चिंगारी कर बग़ावत की तैयारी दे जवाब उनको मुँहतोड़, अपनी यह ख़ामोशी तोड़! चोर-लुटेरों का यह फ़ौज तेरे दम पर करता मौज बिगुल बजा होकर निर्भय निज शक्ति का दे परिचय अपने हक से मुँह मत मोड़, अपनी यह खामोशी तोड़!

कब मिटेंगे आदमख़ोर (Kab Mitenge Aadamkhor)

भड़क उठी हिंसा पुरज़ोर कब मिटेंगे आदमख़ोर? जगह-जगह लाशों की ढेर रक्त में डूबा सांझ-सवेर नित्य नये होते हैं जंग लाल हुई धरती की रंग आग लगी यह चारो ओर, कब मिटेंगे आदमख़ोर? शहर-गाँव श्मशान हुए हँसते आँगन विरान हुए सरल हुआ है ख़ूनी खेल अपना ही घर बना है जेल टूटी मानवता की डोर, कब मिटेंगे आदमख़ोर? सृष्टि का अपमान हुआ अति निष्ठुर इंसान हुआ लुट गया है मन का चैन जिसको देखो भींगे नैन रक्षक हुए लुटेरे-चोर, कब मिटेंगे आदमख़ोर? जहाँ भी देखो चीख-पुकार चहुँ ओर गूँजे चीत्कार सबको है लालच का रोग शत्रु बने हैं अपने लोग व्यथा हृदय को दे झकझोर, कब मिटेंगे आदमख़ोर?

क्या हिन्दू क्या मुस्लिम (Kya Hindu Kya Muslim)

क्या हिन्दू,क्या मुस्लिम यारों ये अपनी नादानी है! बाँट रहे हो जिस रिश्ते को वो जानी-पहचानी है!! क्या पाया है लड़कर कोई छोड़ ये ज़िद्द लड़ाई की किस हक से तू चला काटने सिर ऐ यार खुदाई की तेरी रगों खून है तो क्या मेरी रगों में पानी है! हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई ख़ुद को बाँट रहा है तू एक शज़र के शाख हैं सारे जिसको काट रहा है तू जाति-मज़हब की ये बातें बनी-बनाई कहानी है! इक मिट्टी हम सब टुकड़े यह बँटवारा करना छोड़ इब्ने-आदम मैं भी, तू भी 'करन' भरम में रहना छोड़ क्या अल्लाह या राम ने सबको दी कोई निशानी है!

बापू का स्वप्न (Bapu Ka Swapn)

माना कि तू दुःखी है आज मिला नहीं है पूर्ण स्वराज सच है! बुरा है देश का हाल नहीं यहाँ जन-जन खुशहाल व्यर्थ अभी तक तेरा तपना तोड़ रहा दम देखा सपना दूर नहीं हुआ है तम असफल अभी भी तेरा श्रम राजा माँग रहा है भीख भूल गए सब तेरी सीख मुकर रहे सब लिये शपथ से विमुख हुए अहिंसा पथ से ठनी वतन सौदे की रार एक ही खून में पड़ा दरार ऐसे में दुःख तो होता होगा मन ही मन तू रोता होगा किंतु नहीं मरे हैं तेरे पूत हम बनेंगे शांतिदूत झुका दिया तेरे आगे शीश ठोंक पीठ और दे आशीष हम जन-जन से प्यार करेंगे बापू तेरा स्वप्न साकार करेंगे!

एक बार बजा दे बाँसुरीया (Ek Baar baja de Bansuriya)

एक बार बजा दे बाँसुरीया, मेरे मोहन श्याम साँवरीया॥ सूनी है नगरी निज मन की। और कुंज गली वृंदावन की॥ बरसा  दे  प्रीत  बदरीया, मेरे मोहन श्याम साँवरीया। यमुना  के  बैठ  किनारे। सब विरहन राह निहारे॥ तेरी ग्वालन भई बावरीया, मेरे मोहन श्याम साँवरीया। तेरी मुरली जब जब बोले। मन में मधु  मिसरी  घोले॥ यूँ ही गुजरे सारी उमरीया, मेरे मोहन श्याम साँवरीया। एक बार बजादे बाँसुरीया। मेरे मोहन श्याम साँवरीया॥ 👇🏻 bhajanganga.com

एक टीस (Ek Tees)

छोड़ आया हूँ गाँव ज़िन्दगी की ख़्वाहिशों को पूरा करने के लिए, धँस गया हूँ पूरी तरह शहर की भीड़-भाड़ में! नहीं सुन पाता हूँ अब रूह की छटपटाहट और घुटन की आह इन सपनों के आगे! बहुत सलता है घर-परिवार से दूर होकर यहाँ अकेलेपन को गले लगाना! और एक टीस बार-बार उठती है मन में, कि क्यों कुछ पाने के लिए कभी-कभी इतना कुछ खोना पड़ता है?

बचपन (Bachpan)

छोटी सी दुनिया घर-आंगन के दिन थे, जो हँसते गुज़र गये वो बचपन के दिन थे! कितना जुदा था वो हँसना और रोना, या माँ की आँचल के साये में सोना! वह गुस्से में नरमी वो मीठी सी लोरी ज़िन्दा है जिसकी महक थोड़ी-थोड़ी! एक कोरे काग़ज़ सा जीवन के दिन थे जो हँसते गुजर गये वो बचपन के दिन थे!! मिट्टी के घोड़े,काग़ज़ की कश्ती किये दोस्तों संग जो चन्द मस्ती, फूलों से छुपकर तितलियाँ पकड़ना  अंगुली पकड़कर बाबा का चलना! ना चिंता ग़मों की न उलझन के दिन थे जो हँसते गुज़र गये वो बचपन के दिन थे!! तन्हा और बोझिल बनी ज़िंदगी है गुज़रे दिनों की खटकती कमीं है, लगता है खोकर बचपन को हरदम क्यों आज इतने बड़े हो गए हम! वो सोंधी सी खुशबू क्या सावन दिन थे जो हँसते गुज़र गये वो बचपन के दिन थे!!

मेरी माँ (Meri Maa)

मिट्टी के वो खेल-खिलौने याद दिलाती आई माँ, माज़ी की धुंधली यादों में लोरी गाती आई माँ! दुबली-पतली भोली सूरत दिल पर ग़म का बोझ लिये फटी हुई आँचल से अपनी प्यार लुटाती आई माँ! राह देखती होगी अब भी व्याकुल होकर चौखट पे शाम-सुबह बैठी चूल्हे में आग जलाती आई माँ! बुढ़ी आँखों में आशा और बेबस की तस्वीर छिपाये दर्दों का सैलाब समेटे यूँ मुस्काती आई माँ! कभी स्नेह की हाथ फेरती कभी गोद में बैठाती कान ऐठकर थप्पड़ जड़ती मुझे रुलाती आई माँ! वैसे ही चलता फिरता है उसकी साया आँखों में तन्हाई के आलम में भी साथ निभाती आई माँ!

माँ! मत ला आँखों में पानी (Maa Mat La Aankhon Me Pani)

हे भारती! क्यों होती है उदास हम पूतों पर रख विश्वास नहीं लुटेगा शीश का ताज़  बची रहेगी तेरी लाज कर दूँगा न्योछावर तुझपे अपना तन-मन और जवानी, माँ! मत ला आँखों में पानी! है शोणितों में उबाल वही जीवित हैं तेरे लाल अभी हर पीड़ा झेलेंगे हँसकर आँच न आने देंगे तुम पर कोटि-कोटि पूर्वजों की व्यर्थ नहीं होगी बलिदानी, माँ! मत ला आँखों में पानी! जब तक होगा सांसों में दम  डटे रहेंगे हर पल हम  निःसंदेह तू दे आशीष  नहीं झुकेगा तेरा शीश  युगों-युगों तक रहेगा अंकित  हम लिखेंगे वह अमर कहानी, माँ! मत ला आँखों में पानी! चहुँ ओर होगी खुशहाली  अमिट रहेगी यह हरियाली  सुख-समृद्धि का भंडार  सदैव रहेगा तेरे द्वार  तेरी कीर्ति से महकेगा जग  तू बनी रहेगी वसुधा की रानी, माँ! मत ला आंखों में पानी!

बस इतना साथ निभा देना (Bas Etna Sath Nibha Dena)

मैं हूँ सदियों की ख़ामोशी तुम हँसना मुझे सिखा देना, बस इतना साथ निभा देना।     बस इतना साथ निभा देना।। यह रात घनी अंधेरी है चलना है तन्हा मुझको। अगिनत हैं साये ग़म के कैसे रोकूँगा उनको, आँख-मिचौली रिश्तों की सबने मुझसे खेला है भीड़ है बाहर अपनों की पर मन अंदर से अकेला है। राह बड़ी पथरीली है बचे-खुचे इस जीवन की, हो सकता है गीर जाऊँ तो अपना हाथ बढ़ा देना, बस इतना साथ निभा देना।         बस इतना साथ निभा देना।। मैं नहीं कहता ओ हमराही ता-उम्र हमारे साथ चलो, दो-चार पलों का याराना बस अपना मुझसे बाँट चलो। इससे पहले कि बन जाऊँ कहीं रोते-रोते मैं पत्थर एक प्यार भरी थपकी सिर पे देकर मुझे सुला देना, बस इतना साथ निभा देना।       तुम इतना साथ निभा देना।।

माँ तु सुन रही है ना (Maa Tu Sun Rahi Hai Na)

माँ   तू सुन रही है ना! आज फिर कराह उठा हूँ दर्द से जैसे बचपन में रोता था अक्सर गिरने के बाद! मगर तब तुम थी खड़ी मुझे संभालने को! आज तो बिल्कुल अकेला हूँ कमजोर हूँ, तुमसे इतनी दूर चले आने के बाद! माँ,    तू सुन रही है ना! सारी रात सो नहीं पाता हूँ, तलाशता रहता हूँ तकिये में तेरी गोद का सुकून और ममताभरी थपकियाँ! वो काजल के टीके मिट गए हैं अब मेरे माथे से, जो तुमने लगाए थे ज़माने भर की नज़रों से मुझे बचाने के लिए! माँ,   तू सुन रही है ना! काश! तुम होती हमेशा मेरे साथ, जैसे बचपन में रहती थी!

कुछ ख़्वाहिशें (Kuchh khwahishen)

कुछ ख्वाहिशें सूखने लगी है थककर आहिस्ता-आहिस्ता, जैसे बालकनी में कुछ तुलसी के पौधे मुरझाने को हैं! देखो न, आज कैसा हूँ मैं? बिल्कुल चाय की किसी ख़ाली कप की तरह, जिसे वक़्त ने पीकर छोड़ दिया है अतीत के टूटे-फूटे टेबल पर और उस पर कुछ यादों के गहरे ज़िद्दी धब्बे हैं! उदासियों का लिबास पहने मैं खड़ा हूँ अनमना सा, तुम्हारी उंगलियों को थामकर तनिक दूर साथ चलने के लिए...!         काश! तुम यह समझ पाते!!

तुम ख़ुश तो हो न (Tum Khush To Ho Na)

अज़ीब कशमकश है तुझे खो देने पर, जैसे आज मैं ख़ुद के ही घर में अजनबी हूँ... सब कुछ तो है तुम्हारे पास बस एक मैं ही नहीं हूँ मगर क्या फ़र्क पड़ता है मेरे होने न होने से.... भले मेरे सपनों के शहर जल गये जलने दो,    तुम ख़ुश तो हो न? शायद ! मैं धब्बा ही था तेरे दामन का, चलो नजात मिल गई तुम्हें! मुबारक हो यह नया सफ़र, आख़िर शुरुआत मिल गई तुम्हें! सुना है रास्तों में लोग अक्सर बिछड़ जाते हैं बिछड़ने दो,    तुम ख़ुश तो हो न? कुछ देर साथ रहने से रिश्ता जुड़ ही जाता है, मगर कोई बात नहीं, रिश्ते भी बिकते हैं यहाँ बीच सड़कों पर ख़रीद लेना देखकर कहीं! इन आँखों का क्या बरस जाते हैं ज़रा सी चोट लगने पर बरसने दो,    तुम ख़ुश तो हो न?

लतख़ोर होली (Latkhor Holi)

                  मैं आज अपने कमरे में बैठा कुछ लिखने की सोच ही रहा था कि अचानक मेरे एक अज़ीज मित्र "अंगद बाबू" पके आम की तरह टपक पड़े,आते ही उन्होंने बड़े गर्मज़ोशी के साथ दण्ड-प्रणाम किया तो मैंने भी औपचारिकतावश उनका हाल-चाल पूछ लिया! दो महीने बाद होली का त्योहार आने वाला था, सो मैंने होली की तैयारी जाननी चाही! होली का नाम सुनते ही बेचारे अंगद बाबू सहम गए, मुझे यह समझते देर न लगी कि इन्हें पिछले साल की होली का दर्दनाक मंञ्जर याद आ गया! मैंने सोचा चलो आज इसे ही लिख लिया जाए, दरअसल यह किस्सा कुछ इस प्रकार है:- पिछले साल सुबह का वक़्त था मैंने प्रतिज्ञा कर लिया था कि यह होली मैंने सादगी से मनाऊँगा लेकिन हमारे मित्र अंगद बाबू को तो दारू पीने की सनक सवार थी, और इन्हें कुछ यादगार होली चाहिए था! अतः सुबह-सुबह ही इन्होंने दो-तीन बोतल शराब मुर्ग कबाब के साथ गटक लिया और आवारा साँड़ की तरह इधर-उधर उधम मचाने लगे! कभी देशी सियार की तरह जोर-जोर से हुआं-हुआं चिल्लाते तो कभी ऑस्ट्रेलियन कंगारू की तरह उछलते-कूदते और किसी का दरवाजा पिटते! इसी प्रकार मदमस्त हाथी की तरह झूमते हुए

क्योंकि मैं औरत हूँ न (Kyonki Main Aurat Hoon Na)

कर डालो मेरा व्यापार  या बेच दो बीच बाज़ार दीर्घकाल से करता राज  तेरी दुनिया,तेरा समाज! मैं कुछ न बोलूँगी  प्रत्येक यातना झेलूँगी क्योंकि मैं औरत हूँ न! यद्यपि करके कष्ट सहन  करूँ दायित्वों का निर्वहन  संभालूँ निज घर परिवार  पाया यही मैंने संस्कार! मुझपे सबका हक बेशक  नहीं किसी पर मेरा हक  क्योंकि मैं औरत हूँ न!  घर-आँगन की फुलझड़ी  विवशता में है जकड़ी  यहाँ समाज पुरुष प्रधान  फिर क्यों मिले हमें सम्मान  यह उपेक्षा और तिरस्कार करती जाऊँ सब स्वीकार क्योंकि मैं औरत हूँ न! विविध रस्मों का ओढ़ कफ़न  कारागृह सा है जीवन  आँसू आजीवन पीना है  घुट-घुटकर ही जीना है  नहीं आज़ादी शीश उठाना  चाहे रावण बने ज़माना क्योंकि मैं औरत हूँ न! महज़ वासना की दुकान  आज यही मेरी पहचान  करके सदा ही दोषारोपण  करती रही है दुनिया शोषण  करने को सृष्टि-विस्तार  सहती हूँ असहनीय भार  क्योंकि मैं औरत हूँ न!

हे नारी तू महान है (He Nari Tu Mahan Hai)

हरपल पीड़ा सहकर भी  विषमता में रहकर भी बूँद-बूँद स्वयं गलकर भी  देती है ममता की छाँव  एक विशाल वट वृक्ष की भांति  जननी, सहोदरा, सुता और अर्द्धागिंनी, विविध रूपों में बँटकर भी  ढोती है इन रिस्तों की मर्यादा  एक अतुल्य स्तंभ और  सृष्टि की मुस्कान है, हे नारी तू महान है हे नारी तू महान है!! घर-आँगन की कुसुम-कली  जीवन का अनमोल आभूषण  जग प्रवाह की मौन गति  या समाज का हृदय-स्पंदन  हर पल  हर कदम  तू संसार की जरूरत है  तुम्हीं से सृजन संभव  तू सहिष्णुता की मूरत है  समृद्धि की श्वासा तू  जग तेरे बिना वीरान है, हे नारी तू महान है  हे नारी तू महान है!! अपना लहू पिलाकर तुमने  अखिल विश्व को विस्तार दिया  किंतु इसके बदले जग ने  सदैव तेरा संहार किया क्या एक कदम चल पाएगा  यह दुनिया तुझको खो कर  ध्वस्त हो जाएगी सृष्टि  तुमसे पृथक हो कर! तेरी शीतल छाया में ही  नवयुग का उत्थान है, तू बोझ नहीं जग के लिए  एक संजीवनी वरदान है! हे नारी तू महान है हे नारी तू महान है!!

दादा जी की संगीत संध्या (हास्य-व्यंग्य) Dada Jee Ki Sangit Sandhya

       आज रविवार था और मैं अपने कमरे में बैठकर मुंबई के कुछ खास घूमने योग्य स्थानों पर जाने का विचार कर रहा था! यूँ तो मुंबई के सड़कों पर भीड़ प्रायः हमेशा रहती है लेकिन रविवार को अत्यधिक हो जाती है, अतः मैंने मुंबई भ्रमण की योजना को रद्द करना ही उचित समझा! मैं इसी उधेड़-बुन में खोया था कि गाँव से दादा जी का फोन आ गया! तो आज मैं सोचता हूँ कि आप लोगों को अपने दादाजी की कुछ वॉयोग्राफी बताऊं!  हमारे दादा जी अपने गाँव में अच्छी ख़ासी शख़्सियत रखते हैं, कहा जाता है कि वह अपने जमाने के प्रतिष्ठित कीर्तनिया सिंगर थे! उनके आगे अच्छे-अच्छे गायकों की धोती ढीली हो जाती थी, यह समझिए कि उन्हें अपने गांव में पॉप सिंगर माइकल जैक्सन की उपाधि मिली थी! देखा जाए तो उनकी गायकी का अंदाज एकदम गजब का है और मुझे लगता है कि शायद उनके गले में साक्षात सरस्वती माँ निवास करती हैं,क्या गाने की धुन तैयार करते हैं लाज़वाब, एकदम बप्पी लहरी की तरह! बस एक धुन मैं उनकी आज तक नहीं समझ पाया हूँ और शायद समझ भी नहीं पाऊँगा, वह भजन गाते- गाते अक्सर रास्ता भटक कर हिंदी और भोजपुरी दुनिया में चले जाते हैं, उनकी गायन श

परिवर्तन (Parivartan)

परिवर्तन   सड़कों पर तेजी से दौड़ती गाड़ियाँ आकाश में उड़ते हवाई जहाजें, सागर में दहाड़ते विशालकाय पोत सिमटी हुई छोटी सी यह दुनिया है भाग-दौड़ की भीड़ में लोप! नित्य नये-नये सुख-सामग्री का सृजन करता हुआ यह विज्ञान, प्रतिपल दुनिया में परिवर्तन का एक नया आयाम गढ़ता हुआ इंसान न जाने किस ऊँचाई पर तीव्र गति से चला जा रहा है! कैसा है यह परिवर्तन? बदलती हुई सभ्यता-संस्कृति, उजड़ता हुआ यह परिवेश चकाचौंध की दलदल में धँसता गाँव,शहर और देश! यह क्रांति ने मानव को सुखी, समृद्ध और ताकतवर बना दिया है किंतु दूसरी ओर उतना ही दुःखी, गरीब और कमजोर भी! आज इस प्रगतिशील युग में मानव स्वयं को अकेला,असहज़ और असुरक्षित महसूस करता है! भीड़ से बचने को एकांत ढूँढता है, आख़िर कैसी है यह क्रांति? जो हमें स्वार्थी, आलसी और शैतान कर दे मानवता से कोसों दूर दरिंदगी से सराबोर निष्ठुर,नासमझ और नादान कर दे! कैसी है यह प्रगति? जो दायित्वों से विरक्त कर दे विनाश को आमंत्रित कर दे मनुष्यता को संक्रमित कर दे धरती को निर्वसन कर दे आकाश को अभिशप्त कर दे जल को दूषित कर दे समस्त सृष्ट